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File name | Buddha Vandana Hindi PDF |
No. of Pages | 4 |
File size | 728 KB |
Date Added | Aug 30, 2022 |
Category | Religion |
Language | Hindi |
Source/Credits | Drive Files |
Buddha Vandana Overview
Lord Buddha was born in 563 BC in Lumbini, Shakya Republic (Kapilvastu) Nepal. His real name is Siddharth Gautam. Mahatma Buddha gave a new direction to knowledge and religion. Buddha is also the founder of Buddhism and is revered by Buddhists.
Buddha is also known by many names like Mahatma Buddha, Lord Buddha, Siddhartha, Shakyamuni, etc. He is a great soul who taught people about begging, meditation and penance. At the age of 80, he propagated his religion in place of Sanskrit in the common language of that time “Pali”. Mahatma Buddha died in 483 BC.
बुद्ध वन्दना :
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स ।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स ।
नमों तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स ।
त्रिशरण :
बुद्धं सरणं गच्छामि ।
धम्म सरणं गच्छामि ।
संघ सरणं गच्छामि ।
दुतियम्पि बुद्धं सरणं गच्छामि ।
दुतियम्पि धम्म सरणं गच्छामि ।
दुतियम्पी संघ सरणं गच्छामि ।
ततियम्पि बुद्धं सरणं गच्छामि ।
ततियम्पि धम्म सरणं गच्छामि ।
ततियम्पी संघ सरणं गच्छामि ।
पंचशील :
पाणतिपाता वेरमणी सिक्खापदं समादियामि ।
अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि ।
कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि ।
मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि ।
सुरा-मेरय-मज्ज-पमादट्ठानावेरमणी सिक्खापदं समादियामि ।
भवतु सर्व मंगलं
बुद्ध वंदना त्रिशरण पंचशील
बुद्ध वन्दना :
उन भगवन अर्हत सम्यक सम्बुद्ध को नमस्कार ।
उन भगवन अर्हत सम्यक सम्बुद्ध को नमस्कार ।
ऊन भगवन अर्हत सम्यक सम्बुद्ध को नमस्कार ।
त्रिशरण :
मैं बुद्ध की शरण में जाता हूं ।
मैं धम्म की शरण में जाता हूँ ।
में संघ की शरण में जाता हूँ ।
मैं दूसरी बार भी बुद्ध की शरण में जाता हूँ ।
मैं दूसरी बार भी धम्म की शरण में जाता हूँ ।
में दूसरी बार भी संघ की शरण में जाता हूँ ।
मैं तीसरी बार भी बुद्ध की शरण में जाता हूँ ।
मैं तीसरी बार भी धम्म की शरण में जाता हूँ ।
में तीसरी बार भी संघ की शरण में जाता हूँ ।
पाली में बुद्ध वंदना
पंचशील :
अर्थ मैं अकारण प्राणी हिंसा से दूर रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ ।
मैं बिना दी गयी वस्तु को न लेने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ ।
मैं कामभावना से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ ।
में झूठ बोलने और चुगली करने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ ।
मैं कच्ची-पक्की शराब,नशीली वस्तुओं के प्रयोग से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ ।
सबका मंगल हो
पाली में बुद्ध वंदना- बुद्ध पूजा
वण्ण-गन्ध-गुणोपेतं एतंकुसुमसन्तति ।
पुजयामि मुनिन्दस्य, सिरीपाद सरोरुहे ।१।
पुजेमि बुद्धं कुसुमेन नेनं, पुज्जेन मेत्तेन लभामि मोक्खं ।
पुप्फं मिलायति यथा इदंमे, कायो तथा याति विनासभावं।२।
घनसारप्पदित्तेन, दिपेन तमधंसिना ।
तिलोकदीपं सम्बुद्धं पुजयामि तमोनुदं ।३।
सुगन्धिकाय वंदनं, अनन्त गुण गन्धिना।
सुगंधिना, हं गन्धेन, पुजयामि तथागतं ।४।
बुद्धं धम्मं च सघं, सुगततनुभवा धातवो धतुगब्भे।
लंकायं जम्बुदीपे तिदसपुरवरे, नागलोके च थुपे। ५।
सब्बे बुद्धस्स बिम्बे,सकलदसदिसे केसलोमादिधातुं वन्दे।
सब्बेपि बुद्धं दसबलतनुजं बोधिचेत्तियं नमामि। ६।
वन्दामि चेतियं सब्बं सब्बट्ठानेसु पतिठ्ठितं।
सारीरिक-धातु महाबोधि, बुद्धरुपं सकलं सदा।७।