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Guru Paduka Stotram Lyrics in Sanskrit
आदि शंकराचार्य विरचित गुरु पादुका स्तोत्रम् – हिन्दी में अर्थ सहित
अनन्त संसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् |
वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ १ ‖
यह नौका बन कर अनन्त भवसागर को पार कराता है तथा गुरु के प्रति भक्ति प्रदान करता है। इनका पूजन करने पर व्यक्ति वैराग्य का साम्राज्य प्राप्त करता है। इन श्री (समृद्धि वर्धक) गुरु की पादुकाओं को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।।१।।
कवित्व वाराशि निशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् |
दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ २ ‖
उमड़ते हुए ज्ञान सागर के लिए यह पूर्ण चन्द्र के सदृश है। दुर्भाग्य के दावानल में यह वर्षा करने वाले घुमड़ते मेघों के समूह के समान है इनकी (पादुकाओं) पूजा करने वालों की समस्त विपत्तियों को यह दूर हटा देता है। इन श्री (समृद्धि वर्धक) गुरु की पादुकाओं को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।।२।।
नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः |
मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ ३ ‖
इनकी पूजा करने पर व्यक्ति समृद्धि को प्राप्त करता है, यहाँ तक कि दरिद्रता के कीचड़ में डूबा हुआ व्यक्ति भी समृद्ध हो जाता है। यह मूक व्यक्ति पटु वक्ता में परिवर्तित कर देता है। इन श्री (समृद्धि वर्धक) गुरु की पादुकाओं को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।।३।।
नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां नाना विमोहादि निवारिकाभ्यां |
नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ ४ ‖
आकर्षित करने वाले गुरु के चरणाम्बुज माया द्वारा उत्पन्न विविध इच्छाओं को नष्ट कर देते हैं। जो लोग विनीत भाव से चरणों में झुकते हैं, उनकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इन श्री (समृद्धि वर्धक) गुरु की पादुकाओं को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।।४।।
नृपालि मौलि व्रज रत्नकान्ति सरिद्विराजज्झषकन्यकाभ्यां |
नृपत्वदाभ्यां नतलोकपङ्कते: नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ ५ ‖
ये (पादुकाएँ) राजा के मुकुट में जड़ित रत्न की कान्ति के समान द्युतिमान रहतीं हैं। मगरमच्छों से आक्रान्त विशाल नदी में ये मनभावन नवयौवना के समान (अभय के सौन्दर्य का आनन्द प्रदान करते हुए) उपस्थित रहतीं हैं। जो लोग इनके प्रति नतमस्तक होते हैं उन्हें ये सम्राट के समान सम्प्रभुता प्रदान करतीं हैं। इन श्री (समृद्धि वर्धक) गुरु की पादुकाओं को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।।५।।
पापान्धकारार्क परम्पराभ्यां तापत्रयाहीन्द्र खगेश्र्वराभ्यां |
जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ ६ ‖
ये अन्तहीन पापान्धकार को नष्ट करने वाले सूर्य के समान हैं। ये त्रिस्तरीय कष्ट (दैहिक, दैविक/प्राकृतिक, भौतिक) रूपी सर्प के विनाशक पक्षीराज गरुण के समान हैं। ये अज्ञान के महासागर को सुखाने वाली अग्निदाह के समान हैं। इन श्री (समृद्धि वर्धक) गुरु की पादुकाओं को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।।६।।
शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्यां |
रमाधवान्ध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ ७ ‖
ये मन के नियन्त्रण से प्रारम्भ होने वाले षष्ठ वैभव (षट् सम्पत्ति) को प्रदान करते हैं जो परोपकार एवं निःस्वार्थपरता से आबद्ध होकर संकल्पित समाधि की ओर अग्रसर करातीं हैं। ये पादुकाएँ मोक्ष हेतु हैं और स्थिर भक्ति प्रदान करतीं हैं। इन श्री (समृद्धि वर्धक) गुरु की पादुकाओं को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।।७।।
स्वार्चापराणां अखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्षधुरन्धराभ्यां |
स्वान्ताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ ८ ‖
ये उन लोगों की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करतीं है जो परोपकार में लिप्त रहते हैं और लोगों की आवश्यकता के अनुरूप सहायता करने के लिए तत्पर रहते हैं। पूजा-अर्चना करने पर ये हृदय का शुद्धीकरण करतीं हैं। इन श्री (समृद्धि वर्धक) गुरु की पादुकाओं को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।।८।।
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां |
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ‖ ९ ‖
कामादि षट् दुर्गुणों के सर्पों के लिए ये पादुकाएँ गरुड़ के समान हैं, ये वैराग्य एवं विवेक की निधि प्रदान करतीं हैं। ये ज्ञान प्रदान करके तुरन्त मोक्ष प्रदान करतीं हैं। इन श्री (समृद्धि वर्धक) गुरु की पादुकाओं को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।।९।।
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